मनुष्य के हृदय में भय का साम्राज्य रहता सदा कभी संपत्ति की नास का भय कभी अपमान का भय कभी अपनों से छूट जाने का भय इसीलिए भय का होना सबको स्वभाविक लगता है ।
क्या कभी विचार किया है जो स्थिति अथवा वस्तु भय को जन्म देती है क्या वहीं से वास्तव में दुख आता है।
नहीं ऐसा तो कोई नियम नहीं और सब का अनुभव तो यह बताता है की भय धारण करने से भविष्य के दुख का निवारण नहीं होता
भय केवल आने वाली दुख के कल्पना मात्र ही है वास्तविकता से इसका कोई संबंध नहीं है तो क्या यह जानते हुए भी कि भय कुछ और नहीं
केवल कल्पना मात्र ही है इससे मुक्त होकर निर्भय हो पाना क्या बहुत ही कठिन है अवश्य ही विचार करने की जरूरत है इस पर बहुत ही गहराई से सोचने की कोई जरूरत नहीं है ।