मैं दर्पण जो भी चाहे
देखें अपना चेहरा
जो जैसा है दिखाता वैसा
जिसका जैसा सेहरा,
मुझको तू गंदा ना कर दे
बिगड़ेगी तेरी छाया सदा
ही तो रहने दे तभी दिखेगी
तेरी साया अंदर बाहर
एक बना हूं।
लेकर अपनी काया
ज्योति हीन जगत में
दिखती नहीं मेरी माया,
शून्य परा है क्षितिज विशब्द
फलक है सुन ले सब अपने
शब्द प्रति गुंजित है होते रहते
बीत रहे क्षण य अब्द ,
खोल रखते ढोल बांसुरी देते
रहते स्वर लहरी वन सरोवर
उपवन पर्वत गांव गंवई शहरी