सावन आया साजन नहीं आए Savan aaya Sajan nahin aaye


र्वत श्रृंगों पर 

पंख फैलाकर 

घूमर घूमर चले बदरिया 

चम चम चमके दामनी 

घनन-घनन गर्जत मेघ 

इठला उठी रहित वस्त्र धड़ा 

छमा छम बरखा बरसे

प्रिय  मिलन की आस लिए 

चली वेग से निर्झरिणी 

आलिंगन बंद हुई उदधी से 

हो गए दो तन एक प्राण ।

मन से मिला मन 

प्राण से मिले प्रणा । 

मिट गई विरह की प्यास 

दिवस बीते मधुमास के

प्रियतम रहे परदेस

हार सिंगार व्यर्थ गया मेरा

नहीं मिलन की बेला आई

ग़दराया यौवन मेरा 

अंग अंग से मदाकता फरके 

धक-धक करता है ह्रदय मेरा 

गले में अटकी सांसे ।

सावन की फुहारे मस्ती आई 

तड़प रही हूं दिन रैन, दशा हो गई मेरी ऐसी

ज्यों 
























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